
करीब 400 वर्ष पहले, जब भारतवर्ष आध्यात्मिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रहा था और मुगल सम्राट शाहजहाँ या औरंगज़ेब का शासन काल था — उसी समय उत्तर भारत के एक निर्जन वन क्षेत्र में एक दिव्य चेतना का अवतरण हुआ। वह स्थान, जहां कोई मनुष्य नहीं बसता था, केवल घना जंगल, सन्नाटा और रहस्यपूर्ण प्रकृति का साम्राज्य था। उसी वनों से घिरे, निर्जन स्थान पर प्रकट हुए एक सिद्ध पुरुष — परम पूजनीय, अनंत श्री विभूषित, ब्रह्मनिष्ठ परमहंस सिद्धेश्वर गुरु श्री बाबा फौलाद गिरी जी महाराज।
आगमन नहीं — अवतरण था
कहा जाता है कि बाबा फौलाद गिरी जी महाराज का जन्म किसी साधारण शरीर में नहीं, बल्कि संकल्प और सिद्ध साधना के परिणामस्वरूप हुआ अवतार था। वे सीधे तंत्र, योग और ब्रह्मज्ञान की ऊँचाईयों से उतरकर इस धरती पर पधारे थे। उन्होंने न केवल स्वयं सिद्धियाँ प्राप्त कीं, बल्कि सैकड़ों शिष्यों, संन्यासियों और गृहस्थों को भी मार्ग दिखाया। उनकी साधना में शक्ति थी, उनकी दृष्टि में ब्रह्म था, और उनके मौन में समग्र वेदांत का सार।
घना जंगल बना तपोभूमि
जहां आज हरिद्वार के निकट हजारों श्रद्धालु आते हैं, वहीं 400 वर्ष पूर्व एक घना, निर्जन और रहस्यमय जंगल था। न कोई मार्ग, न कोई बस्ती — केवल प्रकृति और मौन।
बाबा जी ने इसी स्थल को अपनी तपस्थली चुना। वहां वर्षों तक उन्होंने एकांत साधना की। उनके आस-पास वन्य जीव रहते थे, परंतु बाबा जी की उपस्थिति इतनी शांतिपूर्ण और दिव्य थी कि हिंस्र पशु भी उनके समीप अहिंसक हो जाते।
जीवित समाधि — सिद्धि की पराकाष्ठा
बहुत वर्षों तक कठिन तप करने के बाद, एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को सूचित किया कि उनका उद्देश्य पूर्ण हो चुका है। उन्होंने बताया कि अब वे शरीर में रहते हुए भी आत्मा को ब्रह्म में लीन करेंगे — अर्थात “जीवित समाधि”।
और फिर, विधिवत जप, ध्यान और आह्वान के बाद, वे स्वयं ही समाधि में प्रवेश कर गए — बिना मृत्यु के, बिना कष्ट के, केवल शुद्ध योगिक प्रक्रिया से।
यह कोई साधारण घटना नहीं थी, बल्कि तंत्र और योग के इतिहास में एक अद्वितीय उपलब्धि थी।
समाधि बनी सनातन चेतना का केंद्र
जहां उन्होंने समाधि ली — वह स्थान आज भी वह दिव्य ऊर्जा संजोए हुए है।
और सबसे अद्भुत बात यह है कि उसी समाधि स्थल से आज कुंभ मेला के समय “पेशवाई” (धार्मिक जुलूस) निकलती है।
देशभर के अखाड़ों के हजारों संन्यासी, महामंडलेश्वर, नागा बाबा और योगीजन वहां शिविर लगाते हैं।
वह भूमि, जो कभी जंगल थी — आज सनातन धर्म की ज्वलंत चेतना का केंद्र बन चुकी है।
श्रद्धालु मानते हैं कि समाधि स्थल के आसपास ध्यान करने से अब भी बाबा जी की उपस्थिति का अनुभव होता है।
वहां की वायु में कंपन है, पृथ्वी में ऊर्जा है, और नज़रों में दिव्यता।
योग, तंत्र और भक्ति का अद्वितीय संगम
बाबा फौलाद गिरी जी महाराज का जीवन केवल साधना तक सीमित नहीं था। उन्होंने तंत्र का प्रयोग केवल सिद्धि के लिए नहीं, अपितु जनकल्याण, रोग निवारण और धर्म संरक्षण के लिए किया।
उन्होंने दिखाया कि तंत्र केवल रहस्य नहीं, बल्कि ब्रह्म तक पहुँचने का सीधा मार्ग हो सकता है — यदि वह गुरु के मार्गदर्शन में और सेवा की भावना से किया जाए।
आज भी जीवंत है उनकी चेतना
उनके भक्त आज भी उनके बताए मार्ग पर चल रहे हैं।
हर वर्ष उनकी समाधि पर विशेष पूजन, हवन, कथा और भंडारे होते हैं।
नए साधकों के लिए वह स्थान एक शक्तिपीठ के समान है — और अनुभवी योगियों के लिए एक दिव्य केंद्र।
समाप्ति नहीं, आरंभ है यह कथा
बाबा फौलाद गिरी जी महाराज की जीवित समाधि आज भी लोगों को जीवन, मृत्यु और मोक्ष के रहस्यों पर विचार करने को प्रेरित करती है।
वह हमें यह सिखाते हैं कि साधना केवल पर्व नहीं, पथ है — जो आत्मा को अंततः परमात्मा से जोड़ देता है।
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यह केवल कथा नहीं, चेतना है —
यह केवल इतिहास नहीं, आस्था है —
यह केवल समाधि नहीं, सनातन की जीवंत शक्ति है।