
उत्तरकाशी की धरती पर जन्मे और आज पूरे उत्तराखंड में अपनी कलाकारी से पहचान बना चुके मुकुल बडोनी को इस वर्ष गंगा दशहरा पर्व महोत्सव में “गंगा रत्न 2025” से नवाजा गया। यह सम्मान न केवल उनकी कला के प्रति समर्पण का प्रतीक है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि उनके रंगों में पहाड़ की संस्कृति सांस लेती है।
मुकुल बडोनी कोई साधारण चित्रकार नहीं हैं। उनके ब्रश की एक-एक लकीर दीवारों पर वो जीवन फूंक देती है, जिसे देख आंखें ठहर जाती हैं। उत्तराखंड के कई जिलों की दीवारें आज उनकी चित्रकारी से जीवंत हो चुकी हैं। चाहे गढ़वाली स्त्रियों के पारंपरिक परिधान हों या लोक आभूषण, उन्होंने हर बारीकी को इस तरह चित्रित किया है मानो दीवारें स्वयं गाथा सुना रही हों।
नरेंद्रनगर में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान जब विदेशी प्रतिनिधियों ने मुकुल बडोनी की वाल पेंटिंग्स देखीं, तो वे दंग रह गए। उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता को जिस सूक्ष्मता और सुंदरता से उन्होंने उकेरा, उसकी हर जगह सराहना हुई। विदेशों तक में उनकी कला ने प्रशंसा बटोरी और राज्य की पहचान को एक वैश्विक मंच पर पहुँचाया।
उनकी चित्रकारी केवल दृश्य सौंदर्य नहीं रचती, वह समाज में चेतना भी पैदा करती है। कोविड-19 महामारी के कठिन दौर में उन्होंने ऐसी चित्रकारी की जो संक्रमण से बचाव के प्रति जागरूकता फैलाने में कारगर रही। उनकी बनाई पेंटिंग्स ने स्वास्थ्य संदेशों को रंगों के माध्यम से लोगों के मन तक पहुँचाया।
आज मुकुल बडोनी सिर्फ कलाकार नहीं रहे, वे एक प्रेरणा बन चुके हैं। उत्तराखंड के कई युवा उनके काम को देखकर चित्रकला के क्षेत्र में अपने करियर की दिशा तय कर रहे हैं। उनके काम ने यह साबित किया है कि लोकसंस्कृति को सहेजते हुए भी आधुनिक प्रभाव छोड़ा जा सकता है।
स्थानीय लोगों ने अब एक स्वर में यह मांग उठाई है कि मुकुल बडोनी को उनके योगदान और विशिष्ट कला के लिए भारत सरकार की ओर से पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा जाए। लोगों का कहना है कि यह न केवल एक कलाकार का सम्मान होगा, बल्कि समूचे उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और युवाओं की मेहनत की भी जीत होगी।
मुकुल बडोनी का नाम पद्मश्री के योग्य है—इसमें कोई संदेह नहीं। उनके रंगों में न सिर्फ सौंदर्य है, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी, एक लोक चेतना, और एक सांस्कृतिक कर्तव्य भी शामिल है। आज जब दीवारें उनके हाथों से सजती हैं, तो वह सिर्फ चित्र नहीं बनते, वो भावनाएँ, परंपराएँ और संस्कार बनकर उभरते हैं।
उत्तराखंड की पहाड़ियों से निकलकर देशभर में अपनी छाप छोड़ने वाले मुकुल बडोनी एक ऐसी मिसाल हैं जो बताती है कि जुनून, समर्पण और अपनी जड़ों से जुड़ाव हो तो कोई भी कलाकार सीमाओं को पार कर सकता है।