
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डा मोहन भागवत जी को उनके 75 वें जन्मदिवस पर शुभकामनायें देते हुये कहा कि राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम यह वाक्य केवल एक मंत्र या सूत्र नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक, परम श्रद्धेय राष्ट्रऋषि डॉ. मोहन भागवत जी के जीवन की प्राणवायु है। उनके लिए भारत केवल एक भू-भाग, एक देश या एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि एक पवित्र मंदिर है। इस मंदिर को एकता, समरसता और सद्भाव के सूत्र में बाँधने के लिए वे सतत प्रयत्नशील हैं। उनका जीवन राष्ट्र के प्रति अटूट समर्पण और अखंड निष्ठा का जीवंत उदाहरण है।
डा मोहन भागवत जी का व्यक्तित्व किसी एक संगठन, विचारधारा या कार्यक्षेत्र तक सीमित नहीं है। उनका जीवन संदेश देता है कि राष्ट्र सर्वोपरि है और हर कार्य का अंतिम उद्देश्य भारत माता की सेवा होना चाहिए। उनकी दृष्टि में राष्ट्र केवल मिट्टी, भाषा या सीमाओं का नाम नहीं है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आत्मा, संस्कृति और साझी चेतना का नाम है।
डा मोहन भागवत जी का जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण है। वे अनुशासन, संयम और साधना को अपने जीवन का मूल मानते हैं। उनके लिए राष्ट्र और समाज की सेवा ही साधना है। उनका यह विश्वास है कि जब तक समाज में एक भी व्यक्ति भूखा, निरक्षर या वंचित है, तब तक राष्ट्र की उन्नति अधूरी है। यही कारण है कि वे लगातार सेवा, शिक्षा और संस्कार पर आधारित समाज निर्माण की दिशा में कार्य करते हैं।
डा मोहन भागवत जी राष्ट्र को परिवार मानते हैं। वे कहते हैं कि “हम भारतीय केवल जाति, भाषा या प्रांत से नहीं बँधे हैं, बल्कि हमारी साझा संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर हमें जोड़ती है।” यही दृष्टि उन्हें निरंतर समाज के हर वर्ग को जोड़ने और समाज के बीच भाईचारे का सेतु बनाने की प्रेरणा देती है। उनके नेतृत्व में संघ ने शिक्षा, ग्राम विकास, सेवा, पर्यावरण, संस्कार, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्ररक्षा आदि समाज जीवन के लगभग हर क्षेत्र में कार्यों को विस्तार दिया है।
संघ की 100 वर्षों की गौरवशाली यात्रा में उनका कार्यकाल सबसे अधिक परिवर्तनकारी है। उन्होंने संगठन को आधुनिक चुनौतियों के अनुरूप ढालने के साथ-साथ मूल्यों और परंपराओं को और अधिक सुदृढ़ किया। उनका नेतृत्व परंपरा और आधुनिकता का संगम है। वे युवाओं को डिजिटल युग की आवश्यकताओं के अनुरूप आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं, साथ ही उन्हें अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़े रहने का आह्वान भी करते हैं।
श्री मोहन भागवत जी केवल संघ के संगठनकर्ता नहीं, बल्कि एक राष्ट्र-ऋषि हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि राष्ट्र को सर्वोपरि मानना ही सच्चा धर्म है। उनके विचारों में स्पष्टता, उनके व्यक्तित्व में सहजता और उनके कार्यों में गहन समर्पण है। वे मानते हैं कि भारत का भविष्य केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ संस्कृति, आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्यों से सशक्त होगा।
आज जब दुनिया संघर्ष, विभाजन और अशांति से गुजर रही है, तब मोहन भागवत जी का मार्गदर्शन भारत ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी वाणी में सरलता है, परंतु वही सरलता गहन सत्य को प्रकट करती है।
ऐसे महापुरूष, जो राष्ट्र को देवता मानकर उसकी सेवा में जीवन समर्पित कर चुके हैं, उनके 75वें जन्मदिवस पर समस्त भारतवासी गर्व और कृतज्ञता का अनुभव कर रहे हैं। यह केवल एक जन्मदिवस का अवसर नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए उनके योगदान का उत्सव है।
आप दिव्यायु हों, दीर्घायु हों, स्वस्थ रहें और सदैव भारत माता की सेवा में रत रहें। आपका मार्गदर्शन भारतवासियों को निरंतर नई ऊर्जा, नई दिशा और नया आत्मविश्वास देता रहे।
संघ की शताब्दी यात्रा में आपका कार्यकाल अद्भुत, अलौकिक और अनुपम है। आप राष्ट्र की आत्मा के जागरण के लिए दीपस्तंभ बने रहें, यही हर भारतीय की प्रार्थना है।