हरिद्वार/ श्यामपुर ! संत महापुरुष समाज विशेष के लिए नहीं बल्कि सर्व समाज के होते हैं ! संतों का संबंध केवल एक जाति या वर्ण के साथ नहीं होता है! संसार के सभी मनुष्यों को को जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता और सतकर्मों के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाली यह बातें प्रसिद्ध कथावाचक दास दयानंद दयानंद महाराज ने क्षेत्र के ग्राम कांगड़ी में चल रही संत रविदास जी की कथा के दौरान भक्तों से साझा की ! गौरतलब देवभूमि उत्तराखंड के जिला रुड़की के गांव पनियाला में जन्मे संत समनदास जी के शिष्य दास दयानंद महाराज, संतो के शिरोमणि रविदास जी की अमृतवाणी और उपदेशों को गुरु रविदास कथा के माध्यम से जन जन तक पहुंचाने के पवित्र कार्य में लगे हुए है!
इसी क्रम में क्षेत्र के गांव कांगड़ी में गत 13 मई से सात दिवसीय संगीतमयी संत रविदास कथा का आयोजन चल रहा है! जहां ग्राम कांगड़ी सहित दूरदराज व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भारी संख्या में भक्तगण पहुंचकर धर्म लाभ कमाते हुए कथा का रसपान कर रहे हैं! कथा के चौथे दिन कथावाचक दास दयानंद महाराज ने बताया कि गुरु रविदास जी के उपदेश सर्वहित के लिए और हम सभी को सत्कर्म करते हुए सही राह पर चलने की प्रेरणा देते है! संत महापुरुष स्वयं कष्ट सहकर सभी के कल्याण की कामना करते हैं! गुरु रविदास जी के अवतरण दिवस (जन्म) के समय के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए दास जी महाराज ने बताया कि संत शिरोमणि रविदास जी महाराज के माता-पिता के यहां 40 वर्षों तक कोई संतान नहीं थी !
गुरु महाराज के पिता राहु के द्वारा की गई कठिन तपस्या के उपरांत संत रविदास जी महाराज माता कर्मा के गर्भ में विराजमान हुए! और जब गुरु रविदास जी महाराज का अवतरण दिवस आया तो संत जी के पिता दाई को लेने के लिए नगर में पहुंचे, परंतु चमरवंश से ताल्लुक रखने के कारण किसी भी दाई उनके यहां जाना तो दूर उनसे ठीक से बात तक नहीं की! काफी प्रयासों के बाद अंत में एक दाई राहु महाराज के साथ जाने को तैयार हुई! परंतु विडंबना यह थी कि वह दाई जन्म से अंधी और पैरों से अपाहिज होने के साथ-साथ कुष्ठ रोग से पीड़ित थी! उधर रविदास जी के पिता राहु की आंखों के सामने बार-बार प्रसव पीड़ा से तड़पती अपनी पत्नी कर्मावती का चेहरा घूम रहा था! अंत में कोई और विकल्प सूझता ना देख उसी दाई को अपने कांधे पर बिठाकर अपनी पत्नी का प्रसव कराने के लिए घर ले आए ! परंतु संत रविदास जी का पहला चमत्कार तो देखिए जैसे ही प्रसव पीड़ा से तड़पती कर्मावती के गर्भ से गुरु रविदास जी का जन्म हुआ तो उनके कोमल शरीर के स्पर्श मात्र से ही जन्म से अंधी, पैरों से अपाहिज और कुष्ठ रोग से पीड़ित दाई के सभी कष्ट दूर हो गए!
गुरुजी के शरीर का स्पर्श पाते ही अंधी दाई को दिखाई देने लगा, उसके पांव की अपंगता दूर हो गई और दाई का कुष्ठ रोग भी अचानक ठीक हो गया! इसी दौरान पुष्प मालाओं से सजे पालने में संत रविदास जी का बाल रूप के दर्शन करते ही समूचा पंडाल संत रविदास की जय, भक्त रविदास की जय के नारों से गूंज उठा!संत रविदास जी को पालना झूलाते हुए आधुनिक संगीत की तर्ज पर गाए जाने वाले भजनों की धुन पर भक्तगण जमकर झूमे! संत जी ने समय-समय पर ऐसे ही अनेकानेक चमत्कार मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए किए ! हर धर्म और चारों वर्णों के लोग गुरु रविदास जी के अनुयायियों में शामिल है! संत रविदास जी महाराज जी ने अपनी वाणी के माध्यम से यही संदेश दिया कि जाति के आधार पर कोई छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि अपने कार्यों के बल पर व्यक्ति श्रेष्ठ बनता है! मीराबाई, झाली, कमाली, योगवती आदि बड़ी-बड़ी रियासतों की महारानियां,सदना और सिकंदर जैसे असंख्य नाम संत रविदास जी महाराज जी के शिष्यों में शामिल है! संत रविदास जी के श्री मुख से निकली एक-एक वाणी मानव कल्याण और लोकगीत में प्रासंगिक है !
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