किताबें खुद चुप रहती हैं परन्तु हमें बोलना सिखाती है : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव 2024, थानो, देहरादून (उत्तराखण्ड) में आयोजित सम्मान एवं समापन समारोह में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सानिध्य, उद्बोधन और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव 2024

लेखक गाँव थानो, देहरादून (उत्तराखण्ड) – सम्मान एवं समापन समारोह

स्वामी चिदानंद सरस्वती जी, अध्यक्ष परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश का पावन सानिध्य, उद्बोधन और दिव्य आशीर्वाद

गजेन्द्र सिंह शेखावत जी, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री, भारत सरकार, श्रीमती रितु खण्डूड़ी, विधान सभा अध्यक्ष, उत्तराखंड, श्री संतोष चौबे, कुलाधिपति टैगोर विश्वविद्यालय, श्री संतोष तनेजा, अध्यक्ष संकल्प फाउंडेशन, श्रीमती आरूषी निशंक, विदुषि निशंक, 40 से अधिक देशों से आये लेखकों और विश्व के अनेक देशों से आये विशिष्ट अतिथियों ने किया सहभाग

लेखक गाँव संरक्षक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी द्वारा आभार ज्ञापन

धरती का स्वर्ग उत्तराखंड’ स्मारिका का लोकार्पण

इस आयोजन में माननीय श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी, मंत्री संस्कृति एवं पर्यटन, भारत सरकार; श्रीमती रितु खण्डूड़ी, विधान सभा अध्यक्ष, उत्तराखंड; श्री संतोष चौबे, कुलाधिपति टैगोर विश्वविद्यालय; श्री संतोष तनेजा, अध्यक्ष संकल्प फाउंडेशन, श्रीमती आरूषी निशंक, विदुषि निशंक, 40 से अधिक देशों से आये लेखक और विश्व के अनेक देशों से आये विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्य, संस्कृति और कला हमारे समाज की धरोहर हैं। हमें इन्हें सहेज कर रखना होगा क्योंकि इनके माध्यम से ही समाज में सकारात्मक परिवर्तन सम्भव है। श्री निशंक जी ने हिमालय, गंगा, उत्तराखंड व पहाड़ की संस्कृति को जीवंत व जागृत रखने के लिये विलक्षण रचनायें की जो आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रेरणा का स्रोत है।

स्वामी जी ने कहा कि किताबें खुद चुप रहती हैं परन्तु हमें बोलना सिखाती है। किताबें स्वयं एक शांत साथी होती हैं, लेकिन उनके पन्नों में छुपे ज्ञान और विचार हमें बोलने, सोचने और समझने की नई दिशा देते हैं। हर पृष्ठ पर नई कहानियों, अनुभवों और भावनाओं के माध्यम से, किताबें हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं।

स्वामी जी ने कहा कि हिमालय की इन शान्त वादियों में सदियों से साहित्य का सृजन होते आ रहा है। हिमालय केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, आर्थिक और साहित्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुनिया की किसी भी पर्वत श्रृंखला में समाज को जीवन, साहस और समृद्धि प्रदान करने की वह शक्ति नहीं है, जितनी हिमालय के पास है।

स्वामी जी ने कहा कि हिमालय का संबंध न केवल भारत से है, बल्कि यह भारत की आत्मा से जुड़ा हुआ है। इस पर्वत श्रृंखला ने भारतीय मूल्यों को सहेज रखा है, और अब हमें इसके प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखना होगा क्योंकि हिमालय है तो हम हैं, और हिमालय है तो गंगा है।

हिमालय धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिमालय हमारी आस्था और आध्यात्मिकता का केंद्र हैं। हिमालय के संरक्षण के लिए साहित्य सृजन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्योंकि साहित्य हमें जागरूक करने और हमारे प्राकृतिक धरोहरों की महत्ता को समझाने का एक सशक्त माध्यम है। निशंक जी ने लेखक गांव का निर्माण कर हिमालय और साहित्य दोनों को संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

लेखक गाँव संरक्षक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी द्वारा सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया गया। इस अवसर पर ‘धरती का स्वर्ग उत्तराखंड’ स्मारिका का भी लोकार्पण किया गया।

इस साहित्य सम्मेलन में विश्व के कई देशों के लेखकों ने सहभाग किया तथा 10 से अधिक रचनाओं का लोकार्पण किया गया। लेखक गांव के निर्माण हेतु स्वामी जी ने माननीय पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी को अनेकानेक साधुवाद दिया।

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